बन्धन--भाग(१) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बन्धन--भाग(१)

आइए ठाकुर साहब!! पधारिए,
कहिए क्या लेना चाहते हैं?
दुकान के मालिक सेठ मगनलाल ने ठाकुर राघव प्रताप सिंह से पूछा!!
बस,सेठ जी कुछ कम्बल खरीदने है, गरीबों में बांटने के लिए,सर्दी शुरू होने वाली है ना!! ठाकुर साहब बोले।।
अच्छा तो सस्ते वाले दिखाऊं या महंगे वाले,सेठ मगनलाल ने पूछा।।
सस्ते वाले क्यो? महंगे वाले दिखाओ जिससे किसी गरीब की ठंड बच सके, बेचारे को कम्बल ओढ़ने के बाद ठंड लगती रही तो ऐसे कम्बल का क्या फायदा।। ठाकुर साहब बोले।।
जी, ठाकुर साहब आइए,ऐसी भी क्या बात है?जो मर्जी हो देखिए,आप तो हमारे माई-बाप है,आप जैसे लोगों के आने से हमारे दुकान की रौनक बढ़ जाती है,आप कहां सात-आठ गांव के जमींदार, हमारे अहोभाग्य जो आप हमारी छोटी सी कपड़ों की दुकान पर आए, और कालिंदी बिटिया को नहीं लाए,इस बार बहुत अच्छी अच्छी साड़ियां आई है, बिटिया को जरूर पसंद आएगी।
सेठ मगनलाल बोलें।।
मैंने कहा तो था लेकिन उसे फुरसत हो तब तो गांव की औरतों की भलाई के बारे में सोचती और करती रहती है, कहीं उसकी मदद, कहीं इसकी मदद, कुछ नहीं होगा तो गाय-बछड़ो के साथ समय बिताने लगेगी, अभी मैंने कहा था साथ आने को तो बोली गाय को बछड़ा होने वाला है तो मैं यही रुकती हूं,आप जाइए।। ठाकुर साहब बोले।।
अब ऐसा ही होगा ना ठाकुर साहब आखिर बेटी किसकी है? आपकी ही ना!!जब आप गांव वालों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं तो,वो भी आपके गुण लेकर पैदा हुई है,सेठ मगनलाल बोलें।।
ठाकुर साहब ने पांच हजार कम्बल खरीदे, मगनलाल की दुकान से और जा पहुंचे मंदिर बांटने के लिए।।
वहां उन्होंने एक नवयुवक को बैठे हुए देखा जो सबसे अलग बैठा था, ठाकुर साहब ने उसे कम्बल देना चाहा लेकिन उसने कहा मालिक दो दिन से भूखा हूं पहले पेट की आग बुझेगी तब ठंडी-गरमी का एहसास होगा,देना है तो काम दीजिए ताकि कुछ पैसे मिल जाए तो मैं अपने लिए कुछ खाने को खरीद सकूं,
उसकी बातें सुनकर, ठाकुर साहब को बड़ी दया आई, उन्होंने मंदिर के पास वाली दुकान कुछ जलेबियां और पकौड़ियां ख़रीदकर, उसे खाने को दी,
वो नवयुवक जल्दी जल्दी खाने लगा,जब उसकी भूख मिटी,तब उसने ठाकुर साहब को धन्यवाद दिया!!
ठाकुर साहब बोले क्या नाम तुम्हारा?!!
उसने कहा,गिरिधर!!
कोई नहीं है तुम्हारा? ठाकुर साहब ने पूछा!!
जी,अनाथ हूं, उसने उत्तर दिया।।
यहां के तो नहीं लगते, कहां से आए हो? ठाकुर साहब ने फिर पूछा।।
हां, सही कहा आपने ,पास वाले गांव से आया हूं, मां-बाप बचपन में छोड़कर चले गए थे एक दूर के मामा थे उनके यहां रहता था, मामा-मामी ने तो अच्छे से रखा लेकिन जब उनके बेटे की शादी हो गई तो भाभी ने रखने से मना कर दिया,दो दिन से भटक रहा हूं, कहीं कोई काम नहीं मिला।। नवयुवक बोला।।
अच्छा,ये बताओ मेरे खेतों में काम करोगे, ठाकुर साहब ने पूछा।।
गिरिधर बोला,काम की तलाश में ही तो हूं,आप मुझे काम देंगे इससे भला और क्या हो सकता है।।
अच्छा तो चलो, खलिहान में एक छप्पर वाली कोठरी बनी है,नीम के पेड़ के नीचे और बगल में कुंआ है,तुम वही रह लो ,चलो मैं तुम्हें जगह दिखाता हूं, मैं तुम्हारे लिए कुछ कपड़े,बर्तन, खाना बनाने के समान की ब्यवस्था करवाता हूं, तुम नहाकर,आज आराम करो,कल खेतों में ले जाऊंगा फिर बताता हूं कि क्या काम करना है।
ठीक है, मालिक आप जैसा कहें, गिरिधर बोला।।
ये क्या?मालिक नहीं ठाकुर साहब कहो,सबका मालिक तो वो है,ऊपर वाला, वहीं सारे खेल रचता है,हम तो उसके हाथों की कठपुतलियां हैं,बस हमें तो उसके कहे ‌अनुसार करना पड़ता है।।
ठाकुर साहब बोले।।
जी, ठाकुर साहब जैसी आपकी आज्ञा, गिरिधर बोला।।
फिर वहीं,आज्ञा-वाज्ञा कुछ नहीं, तुम तो मेरे बेटे जैसे हो, ठाकुर साहब बोले।।
जी, गिरिधर बोला।।
ठाकुर साहब ने गिरिधर को खलिहान और घर दिखाया और वो चाबी देकर चले गये,जाते हुए बोले मैं थोड़ी देर में आता हूं और थोड़ी देर में वो कुछ लोगों के साथ समान लेकर पहुंच गए जिनमें कुछ कपड़े और घर-गृहस्थी का समान था, बोले अब तुम कुंए से पानी निकाल कर स्नान कर लो तब तक कालिंदी खाना लेकर आती ही होगी।
जी कालिंदी कौन ? गिरिधर ने पूछा।।
अरे, मेरी बेटी, ठाकुर साहब बोले।।
अच्छा, ठीक है, ठाकुर साहब।।
अभी मैं जाता हूं,कुछ काम है,बाद में मिलता हूं, इतना कहकर ठाकुर साहब चले गए।।
गिरिधर ने स्नान किया,साफ कपड़े पहनकर, कमरे में गया ही था कि कालिंदी खाना लेकर पहुंची।।
कालिंदी ने सांकल खटखटाई__
गिरिधर बोला,कौन है?
कालिंदी बोली,खाना लेकर आई हूं।।
अच्छा,आप अंदर आ जाइए।।
कालिंदी ने अंदर आकर खाना रख दिया और जाने लगी।।
गिरिधर बोला, बहुत बहुत धन्यवाद!!
कालिंदी भी मुस्करा कर वापस चली आई।।
कालिंदी के जाने के बाद गिरिधर ने खाना खाया और आराम करने लगा।।
शाम को ठाकुर साहब गिरिधर के पास पहुंचे और पूछा।।
और गिरिधर बेटा!! सब ठीक है, कोई परेशानी तो नहीं हुई, खाना ठीक से खा लिया था।।
हां, ठाकुर साहब सब ठीक है, आपने मुझ अंजान को सहारा दिया,काम दिया, मेरे लिए बहुत बड़ी बात है,आप ऐसी बातें करके मुझे शर्मिंदा मत कीजिए।। गिरिधर बोला।।
अच्छा ठीक है बेटा,आज रात तुम खाना हमारे पर ही खाना खाओ, मैं मुंशी जी को भिजवाता हूं उनके साथ आ जाना।
गिरिधर बोला, ठीक है ठाकुर साहब।।
और शाम को गिरिधर ,ठाकुर साहब के यहां पहुंचा।।
ठाकुर साहब ने कालिंदी से कहा बेटी खाना लगवाओ,आओ बेटा,आइए मुंशी जी खाना खाते हैं।।
खाना परोसते समय कालिंदी की नजर बार बार गिरिधर के ऊपर जा रही थी, कालिंदी को गिरधर का भोलापन भा गया था और ये सब मुंशी जी और ठाकुर साहब की नजरों से भी छिपा नहीं रह गया।
दूसरे दिन से गिरिधर ने खेतों में काम करना शुरू कर दिया,रात दिन मेहनत करने लगा,उसकी मेहनत और लगन देखकर ठाकुर साहब बहुत खुश हुए, मुंशी जी से बोले कितना मेहनती लड़का है,साथ में ईमानदार थी।
इसी बीच ठाकुर साहब के एक पुराने मित्र अमृत राय अपनी बेटी मीरा के साथ उनसे मिलने आए, दोनों मित्र बचपन से साथ ही पढ़ें थे,अमृत राय जी की सरकारी नौकरी लग गई तो वो शहर में रहने लगें और ठाकुर राघव प्रताप को अपनी जमींदारी सम्भालने के लिए गांव में रूकना पड़ा।।
शाम के समय ठाकुर साहब ने गिरिधर को अपने घर बुलाया, अपने मित्र अमृत राय जी से मिलने के लिए।।
कालिंदी भी बहुत खुश थी,मीरा से मिलकर,ये दोनों भी बचपन की सहेलियां हैं, दोनों की एक जैसी कहानी है कि दोनों की मां नहीं है, दोनों को अपने अपने पिता से भरपूर प्यार मिला।।
दोनों सहेलियों ने मिलकर खाना बनाया क्योंकि ठाकुर साहब को किसी बाहर वाले के हाथों का खाना पसंद नहीं है,इतने पैसे वाले हैं चाहे तो खाना बनाने वाले महाराजो की भीड़ लग जाए लेकिन नहीं, ठाकुर साहब ने कभी चाहा ही नहीं, पहले ठाकुर साहब खाना बनाते थे फिर बड़ी होने पर कालिंदी।।
गिरिधर ने हवेली में प्रवेश किया, जैसे ही ठाकुर साहब ने देखा तो बोले,आओ! गिरिधर बेटा आओ।
ठाकुर साहब ने गिरिधर को अपने मित्र अमृत से मिलवाया।।
बोले, इससे मिलो,ये गिरिधर है, बहुत ही मेहनती और ईमानदार लड़का है,जब से इसने खेतों में काम करना शुरू किया है, खेतों में अलग ही चमक आ गई है।
गिरिधर बोला, ठाकुर साहब ये तो आपके देखने का नज़रिया है, आपकी कृपा है,जो मुझे इस काबिल समझा।।
ठाकुर साहब बोले, अच्छा ठीक है ये सब छोड़ो चलो खाना खाते हैं, दोनों बेटियों से कहो कि खाना परोसे।।
मीरा की नजर जैसे ही गिरिधर पर पड़ी, गिरिधर की सादगी उसे अच्छी लगी____

क्रमशः___
सरोज वर्मा___